
बिहार की राजधानी पटना की दोपहर वैसे तो गर्म थी, लेकिन 11 जून को आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के घर मौसम कुछ ज्यादा ही ‘तेजाबी’ हो गया। वजह? एक 78 किलो का लड्डू केक, एक तलवार, और राजनीति का वो पुराना ‘लालूगिरी’ स्टाइल।
लालू यादव ने जैसे ही अपने जन्मदिन पर तलवार निकाली और केक पर चलाई, कैमरों की फ्लैश और ट्विटर की ट्रिगरिंग दोनों तेज हो गईं। मजेदार बात? उनके पैर उस वक्त केक टेबल पर टिके थे — जैसे केक नहीं, बिहार का बजट काटा जा रहा हो।
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लड्डू केक या सत्ता की भूख?
आरजेडी समर्थकों के लिए यह पल “राजनीतिक मोक्ष” जैसा था। आखिरकार, वो केक नहीं, ‘समाजवाद का प्रतीक’ था। तलवार के साथ जैसे ही कटिंग हुई, समर्थकों ने जयकारा लगाना शुरू कर दिया — “लालू ज़िंदाबाद, केक बर्बाद!”
मांझी का मिसाइल ट्वीट: “कल AK-47 से न उड़ जाए केक!”
राजनीति में उत्सव के साथ-साथ विरोध का ‘ताजा मसाला’ भी जरूरी होता है। और इसे परोसा जीतन राम मांझी ने। उन्होंने ट्वीट किया: “आज जब सरकार में नहीं हैं तो साहेब तलवार से केक काट रहें हैं, गलती से बेटवा कुछ बन गया तो AK-47 से केक को उड़ाया जाएगा।”
ट्वीट वायरल हुआ, मीम्स बन गए, और मांझी ट्रेंडिंग में आ गए — भले ही पार्टी ‘हम’ हो, ट्वीट ‘तूफानी’ था।
लालू की ‘विंटेज दबंगई’ या पुरानी स्क्रिप्ट का नया रीमिक्स?
लालू यादव का राजनीतिक सफर वैसे ही विवादों से भरा रहा है जैसे उनके केक में सूखा मेवा। छात्र राजनीति, जेपी आंदोलन, मुख्यमंत्री पद, रेल मंत्री और फिर चारा घोटाला… सबमें कुछ ना कुछ ‘स्वादिष्ट मसाला’ रहा है।
अब जब वो सत्ता से दूर हैं, स्वास्थ्य भी साथ नहीं दे रहा, केस भी पीछा नहीं छोड़ रहे — तब तलवार और केक का मेल क्या दर्शाता है?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है:
“ये इमोशनल रीकॉल है — लालू ब्रांड की याद दिलाना कि ‘बुजुर्ग शेर’ अभी ज़िंदा है, और सोशल मीडिया भी इसकी गवाही दे रहा है।”
लोकतंत्र में तलवार चलेगी या तर्क?
बड़ा सवाल ये है कि क्या राजनीति अब महज इवेंट मैनेजमेंट हो गई है? क्या किसी नेता का तलवार से केक काटना लोकतंत्र की खिल्ली है या जनता के मनोरंजन का नया साधन?
क्या ये पब्लिक रिलेशन स्टंट था या पॉलिटिकल सिग्नलिंग?
क्या ये “लालू रीबूट 3.0” की शुरुआत है?
और सबसे जरूरी — केक में लड्डू था या जातीय समीकरण?
लड्डू 78 किलो का था, पर लोकतंत्र का वजन कितना था?
संपादकीय टिप्पणी:
राजनीति अब सिर्फ नीतियों की नहीं, प्रतीकों और प्रतीकात्मक हरकतों की भी हो गई है। तलवार से केक काटना, ट्विटर से सियासी झटका देना और कैमरे के लिए सीन बनाना — ये सब नई राजनीति की पुरानी स्क्रिप्ट लगती है।
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